INTERVIEW!! “मेरे हिसाब से बेड बॉय इमेज कुछ और बदलना है और गुड बॉय इमेज ज्यादा अपने अंदर लाना है” – सलमान खान
By Mayapuri on July 15, 2015
सलमान खान अपने होम प्रोडक्शन तले बन रही फिल्म ,”बजरंगी भाईजान ” के प्रोमोशन्स में कोई कसर नहीं छोड़ रहे है। बजरंगी भाईजान इस ईद की एक अनूठी फिल्म है जिसमें सलमान बिना पाकिस्तानी बच्ची को अपने घर वापस मेहफूज पहुंचते है। सलमान हमेशा से हर धर्म की इज्जत करते है और अपने बीइंग ह्यूमन द्वारा मदद भी करते है। और तो और वह अपना बेड बॉय इमेज को गुड बॉय में बदल चुके है।
कुछ भावुक हो कर सलमान बोले,”बस धीरे धीरे बदल रहा हू ,पर अभी मेरे हिसाब से बेड बॉय इमेज कुछ और बदलना है और गुड बॉय इमेज ज्यादा अपने अंदर लाना है। मेरे मरने के बाद एक पिता मुझे अच्छा समझेगा तो दूसरा कहेगा नहीं मुझे ऐसा बेटा नहीं चाहिए। मुझे इन्ही दोनो वजहों से जाना जायेगा। मैं ने कई मर्तबा अपने पेरेंट्स को दुखी किया होगा किन्तु वो सब नेगेटिव चीज़ो हो में पॉजिटिव में बदलना चाहता हू ” मायापुरी की संवाददाता लिपिका वर्मा से एक एक्सक्लुसिव भेंटवार्ता में ढेर सारी बातें की –
प्रोमोशन्स के बारे में आपका क्या ख्याल है ?
पहले हम लोग कुछ ज्यादा प्रोमोशन्स नहीं किया करते थे। कोई एक आदा मैगज़ीन में इंटरव्यू दे दिया करते थे। फिर भी फिल्मे बम्पर हिट हो जाया करती। और वह मैगज़ीन एक महीने बाद हम तक पहुँचती तब तक हम यही सोचते रहते की इस इंटरव्यू में क्या छपा होगा। उस वक़्त प्रेस ने हमे बहुत बेवकूफ बनाया। फिर अब आया टैबलॉयड का ज़माना तो हर सुबह को हमे यह चिंता सताती की आज के टैबलॉयड में क्या छापा होगा। उसके बाद आफ्टरनून पेपर भी छपने लगा। अब तो हर आधे घंटे बाद न्यूज़ छपती है सोशल मीडिया पर। सो प्रोमोशन्स काफी मायने रखता है।
इस ईद क्या अपेक्षा रखते है आप?
बस मै अपने प्रशंसको से अपनी तारीफ सुनना चाहता हू और यही मेरे लिए मेरी जीत होगी।
त्यौहार के दिन फिल्म रिलीज़ करने से कितना फायदा होता है ?
हर त्यौहार किसी भी फिल्म को फायदा ही पहुंचाती है। चाहे वह क्रिसमस ,ईद दिवाली या फिर होली ही क्यों ना हो त्यौहार का मज़ा दुगना हो जाता है। सब का मूड मजे लेनें का होता है ,तो सब दोस्त साथ मिल कर त्यौहार मनाने के बाद फिल्म भी देखना पसंद करते है। यह उनके लिए एंटरटेनमेंट का जरिया भी होता है। और यदि उनके चाहिते हीरो की फिल्म आ रही हो किसी त्यौहार के दिन तो उनके लिए सोने पे सुहागा हो जाता है।
आपको कौन से त्यौहार मानाने पसंद है ?
हम बांद्रा के छोकरे है। हमेशा से बांद्रा में ही रहें है सो क्रिसमस मानना ही सब से ज्यादा पसंद है मुझे और तो और यहाँ पर स्कूलों में क्रिसमस के लिए बहुत ढेर सारी छुट्टिया भी मिलती है.जबकि ईद की केवल एक ही दिन की छुट्टी मिलती है। हमारा एक सीधा सादा परिवार है और वैसे भी हम सारे त्यौहार मनाते है।
कबीर खान के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा ?
कबीर और मेरी सोच काफी मिलती जुलती है। वह बहुत ही मेहनती निर्देशक है और जैसी कहानी पेपर पर उतारते है ठीक वैसी ही कहानी परदे पर उतार लेते है । बजरंगी भाईजान में कोई उपदेश नहीं दे रहे है हम, बस लार्जर देन लाइफ एवं रीयलिस्टिक तौर से कहानी पेश कर रहे है । यह सीधे सादे लोगों की कहानी है किन्तु इस फिल्म का बैक -ड्राप लार्ज है।
सिनेमा से जुड़े है आप क्या कहना है सिनेमा के बारे में?
इस तरह की फ़िल्में करना एक सचेत प्रयास है मेरा। जब से मै ग्रो कर रहा था और अभी भी ग्रो कर रहा हू, उसी तरह से ऑडियंस जब कभी भी किसी हीरो यानि उस फिल्म के किरदार से प्रभावित होती है तो वो उस के चरित्र चित्रण को काफी अपने अंदर उतार लेती है। इसलिए मेरा ऐसा मानना है मुझे लोग फॉलो ना करे मेरे चरित्र को ज्यादा फॉलो करें। आप अपने हीरो में विश्वास करते है और एक अच्छे व्यक्ति बनने की कोशिश करते है उसकी अच्छाईयों को अपने अंदर ढालने की कोशिश भी करते है। कई पिता एक अच्छे पुत्र के किरदार को देख कर यह भी चाहते है कि काश मेरा ऐसा ही बेटा होता ? उसके किरदार को देख कोई लड़की सोचती -काश ऐसा मेरा बॉयफ्रेंड होता ? तो बहन यह सोचती कि काश मेरा भाई ऐसा ही होता? फिल्म से हम कुछ न कुछ सीख जरूर लेकर जाते है। मैं सिनेमा का हिस्सा इसलिए बना ताकि में लोगो को कुछ अच्छी सीख दे सकू। मेरा ऐसा मानना है – कुछ बदलाव जरूर आता है फ़िल्में देख कर फिर चाहे वो उसी वक़्त आ जाये या फिर कुछ अरसे बाद आये । मै कभी ज़ोम्बी टाइप या फिर साइंस फिक्शन टाइप फिल्मो का हिस्सा नहीं बनता हू. मैंने हमेशा ऐसी फिल्मो में ही भाग लिया है जो ह्यूमन भावनाओ से जुड़े हो अब बिग बॉस लीजिये जब कभी कोई अच्छे कारण के लिए रियेक्ट करता तो आपको बहुत अच्छा लगता किन्तु जब कोई बिना वजह ही रियेक्ट करता तो गुस्सा आता है उस व्यक्ति पर। और यह सब देख कर कई मर्तबा आप अपने जीवन में भी उस से प्रेरित हो जाते है।
कश्मीर में काम करने का क्या तजुर्बा रहा ?
यह जानकर दुःख हुआ की वहां पर थिएटर्स नहीं है या तो फिर वो पायरेटेड सीडीदेखते है या फिर डीवीडी पर फ़िल्में देखते है। में जरूर चाहूंगा कि बजरंगी भाईजान का एक स्पेशल स्क्रीनिंग वहां पर करवाऊं। मैं जब वहां के लोगो से मिला तो यह जानकर बेहद ख़ुशी हुई की माँ-बाप ,दादा -दादी और बच्चे तक मेरी फ़िल्में देखते है । और जैसा मीडिया में दर्शाया गया है कि उधर की स्थिति अच्छी नहीं है मुझे ऐसा कुछ नहीं लगा। बहुत ही सुन्दर जगह है कश्मीर। वहां के लोगो के लिए कोई ज्यादा एन्जॉयमेंट नहीं है। यदि थिएटर्स हो तो सरकार को भी एंटरटेनमेंट टैक्स मिलेगा वहां पर हमारी फिल्मो द्वारा अमन चैन भी लाया जा सकता है। बजरंगी भाईजान मैं वहां ले जाना जरूर चाहूंगा।
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