INTERVIEW!! “मेरे माता – पिता दोनों क्रिएटिव हैं तो जाहिर सी बात है आनुवंशिक रूप से दोनों का टैलेंट मेरे अंदर है” – मेघना गुलज़ार
मेघना गुलज़ार, सोशियोलॉजी की डिग्री हासिल करने के बाद 1995 में सईद अख्तर मिर्ज़ा के साथ बतौर सहायक निर्देशक जुड़ी । सन 1995 में मेघना, “टिस्क स्कूल ऑफ आर्ट्स” न्यूयॉर्क फिल्म मेकिंग का कोर्स करने चली गयी। वहां से लौटने के बाद अपने पापा गुलज़ार के साथ फिल्म, “माचिस “और हू तू तू” में भी काम किया और तत्पश्चात अपनी पहली फिल्म, “फ़िलहाल” 2002 में बतौर निर्देशक मिस यूनिवर्स सुष्मिता सेन और तब्बू को लेकर बना डाली। अपनी दूसरी फिल्म, “जस्ट मैरिड ” के बाद, “दस कहानियां” भी बनाई उन्होंने और अब अपने जोनर से अलग ड्रामा, थ्रिल और मर्डर मिस्ट्री पर आधारित रियल स्टोरी, “तलवार” जो कि अब रिलीज़ पर है उसको लेकर मेघना खासी उत्साहित है। विशाल भारद्वाज द्वारा लिखित कहानी तलवार अब पर्दे पर क्या रंग लाती है यह तो समय ही बताएगा ??
फिल्म “तलवार” अब रिलीज़ पर है सो – मेघना गुलज़ार ने ढेर सारी प्रोफेशनल एवं पर्सनल बातें शेयर की – हमारी संवाददाता लिपिका वर्मा के साथ –
फिल्म “तलवार” जैसी फिल्म बनाने की कैसे सोची अपने ?
जी हाँ, मेरी पहली फिल्में रिश्तों पर आधारित फिल्में रही है। यह फिल्म- मर्डर एवं थ्रिल से परिपूर्ण फिल्म है। अपने जोनर से कुछ अलग हट कर कर रही हूं। दरअसल में विशाल जी, इस फिल्म को लिख रहे थे और जब बताया तो मैं अच्छा ख़ासा उत्साहित हो गयी और मैंने सोचा कि मै निर्देशन की बागडोर ही संभाले रहूं। चैलेंजिंग लगा मुझे इस फिल्म को करना और जिस चीज को करने में आप बहुत ही सहज होते हैं उससे कुछ अलग करना एक अलग ही अनुभव होता है। आज तक जो कुछ भी किया है उस से बिलकुल ही अलग कर रही हूं अच्छा लगा यह फिल्म चुनकर।
फिल्म के बारे में बतायें ?
यह एक मर्म रिश्तों पर आधारित कहानी है। मेरे ख्याल से इस का विषय चुनौतीपूर्ण है। यह विषय आपका पीछा नहीं छोड़ता है आप उसे सुलझता हुआ देखने की बरसक कोशिश करते रहते हैं। इतने ढेर सारे सवाल जेहन में उठते है जिनका उत्तर जानना जरुरी है, यह इस विषय की सबसे ज्यादा उत्सुक एवं कौतूहल पूर्ण मन की जिज्ञासा है जिसे हर कोई जानना चाहता है। सो इस क्षेत्र को खोजना, पता लगाना यही महत्वपूर्ण लगा मुझे। अतः में इस कहानी के प्रति खिंचती चली गयी और उससे जुड़ गयी।
विशाल जी ने यह फिल्म लिखी है आप क्यों नहीं लेखन से जुड़ी ?
मुझे यह बात मालूम है कि विशाल जी एक सशक्त राइटर हैं और यह उन का आईडिया था – हम इस पर फिल्म बनायें। सो मैंने अपने आप को निर्देशन से ही जोड़े रखना ठीक समझा। उन्होंने इस फिल्म को लिखने हेतु बहुत सारा रिसर्च किया है। इतनी बारीकियों से डिटेल्ड वर्क किया है उन्होंने सो हमें फिल्म को बनाने में कोई कठिनाईयों का सामना नहीं करना पड़ा।
इस विषय पर काम करते हुए सामाजिक तौर पर क्या विचार आया आपको ?
ज्यूँ – ज्यूँ ,कहानी आगे बढ़ती बस यही ख्याल जेहन में हमेशा आता कि -हमारा समाज किस ओर जा रहा है। यदि ऐसा हुआ है तो यह कैसे हो गया ? वगैरह वगैरह, यह सब सवाल हम सबके मन में आते रहे।
केस को किस तरह ले रहे है आप बतौर कहानी ?
जैसा की जग जाहिर है इस केस में डबल थ्रोइरी द्वारा केस को देखा गया है। एक सिद्धांत- यह जतता है कि नौकरों ने मारा होगा? जबकि दूसरा सिद्धांत जो सामने आता है- पेरेंट्स ने मारा होगा? हर कहानी की अपने वजह है -यदि माता -पिता ने मारा होगा तो ,”ऑनर किलिंग के तहत आता है यह मामला और यदि नौकरों ने तो फिर -छेड़ -छाड़ का मामला बनता है। कहाँ गलती हुई होगी यदि यह सब आसानी से मिल जाये तो वजह समझ में आ जाती है और फिर इलाज भी मिल जाता है। अब सारी कहानी जानने के लिए तो आपको फिल्म देखनी पड़ेगी। हमने दोनों सिद्धांतो को लेकर कहानी का ताना बाना बुना है।
फिल्म निर्देशन के दौरान, आपके मन में किस तरह की भावनाएं हिलोरे ले रही थी ?
मैंने अपने अंदर की भावनाओं को बिल्कुल ही मार दिया था। दूरी बना ली थी अपने सोचने विचारने की भावनाओं से इस केस को लेकर क्यूंकि यदि मैं अपने आपको इस से दूर करके काम नहीं करती तो इमोशनली मुझे बुरा लगता। ऐसा करने से मेरे अंदर इमोशंस की कोई भी वजह नहीं बची और बस बतौर निर्देशक हर सीन को देखती और आगे बढ़ जाती ।
कुछ सोच कर मेघना बोली, ” हाँ यह जरूर है कि हमारा समाज कहां जा रहा है ? यह जरूर मैं सोचती हूं कभी कभी। यह सब हमारे समाज का गरीब प्रतिबिंब पेश करते है। इस तरह के क्राइम जिसमें माँ-बाप दोषी ठहराये जाए इस तरह के केसेस पहले कभी नहीं सामने आये। उस वक़्त तो हम -चार्ल्स शोभराज और बिल्ला और रंगा के क्राइम के बारे में जानकारी हासिल होती और उनकी कहानियां बनाया करते। मुझे अपने बारे में ज्यादा समीक्षा पसंद नहीं सो कैमरे के पीछे ही ठीक हूं।
पापा (गुलज़ार साहब) और मां (राखी) दोनों ही क्रिएटिव हैं आप काव्य रचनायें ज्यादा पसंद करती हैं या फिर एक्टिंग ?
जी, मैं बहुत ही पर्सनल व्यक्तित्व रखती हूं, सो कभी कभी कवितायें लिख लेती हूं। कुछ जेहन में आता है या फिर कोई बात मन को लगती है- तो उस समय काव्य रचनायें खुद-ब-खुद आ जाती है, जिन्हें पन्नों पर लिख लिया करती हूं, पर वह मेरे अपने लिए ही होती है। उन्हें पब्लिश करने का कोई भी इरादा नहीं है। मेरे माता -पिता दोनों क्रिएटिव है तो जाहिर सी बात है आनुवंशिक रूप से दोनों के टैलेंट मेरे अंदर है। और वैसे भी हमारा पूरा परिवार पढ़ने लिखने में रूचि रखता है। मैं बहुत ही अन्तर्मुखी हू ,कैमरे के पीछे ही काम करना पसंद करती हूं अभिनय में रूचि नहीं रखती हूं।
आप का बचपन कैसा रहा क्या आप शूटिंग पर मां के साथ जाया करती ?
जैसे सब आम बच्चों का बचपन होता है वैसे मेरा भी बचपन रहा। कभी कभी जब छोटी थी तब माँ के साथ उनके सेट्स पर चली जाया करती। किन्तु जैसे स्कूल जाने लगी तो स्कूल मिस करके जाना संभव नहीं होता है इस लिए सेट्स पर जाना बंद होगया मेरा। ।
अपने फ्यूचर को कैसे देखती है आप?
अभी तक इस फिल्म ने मुझे कसकर पकड़ रखा है इस लिए कुछ भी सोचने का मौका नहीं मिला है। तलवार फिल्म रिलीज़ हो जाये ,फिर थोड़ी सी सांस लुंगी और फिर आगे क्या करना है उस पर विचार करुँगी।
शुक्रवार का भय लगता है आपको ?
बिल्कुल ! इतनी मेहनत की है तो उसका फल मीठा हो ऐसा सबको लगता है सो मुझे भी यह जरूर लगता है कि जब हमारी फिल्म शुक्रवार को रिलीज़ हो तो सब को पंसद आये ।
आगे क्या करने का इरादा है ?
इस फिल्म की रिलीज़ के बाद सोचा जायेगा। फिल्म रिलीज़ के बाद पहले थोड़ा सांस लुंगी फिर कुछ आगे की सोचूँगी