Thursday, 27 August 2015

INTERVIEW!! मेरी फिल्म में विलन नहीं होता है।” – कबीर खानBy Mayapuri on August 27, 2015

INTERVIEW!! मेरी फिल्म में विलन नहीं होता है।” – कबीर खान

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लिपिका वर्मा से एक ख़ास मुलाकात
निर्देशक कबीर खान बहुत ही खुश हैं कि उनकी फिल्म, “बजरंगी भाईजान में जो कहानी दिखाई गयी है वो एक पाकिस्तानी लड़की की कहानी है। जो की अपने माँ बाप से बिछड़ कर हिंदुस्तान आ जाती है और किस तरह उसे सलमान वापस अपने वतन पाकिस्तान पहुँचाने  का जिम्मा लेते हैं, ठीक ऐसी ही लड़की की कहानी पाकिस्तान में रियल में सुनने और देखने में आई है। जिसका नाम गीता है वह भारतीय मूल की नागरिक है और पाकिस्तान में रहती है।
गीता को वापस भारत लाने का इंतज़ाम किया जा रहा है इस बारे में क्या कहना है कबीर का ?
गीता हनुमान की भक्त है और पाकिस्तान में जो परिवार उसकी देख रेख कर रहा है वो मुस्लिम है। इस से अच्छी बात और क्या हो सकती है कि हमने जो कहानी लोगों के सामने परोसी है वह सही मायने  में भी दुनिया में चल रही है। गीता रोज़ा भी रखती है और मंदिर भी जाती है। हमे खुशी है कि दुनिया में धर्म के नाम पर बंटवारा नहीं हो ऐसी एक जीवंत कहानी सामने आई है। सब को एकजुट होकर यही सोचना है और मिल जुल कर धर्मनिरपेक्षता को अपना लेना चाहिए।”
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आप कितने पॉजिटिव बन्दे है? उस दिन आप को गुस्सा क्यों आया ?
मैं एक बहुत ही सकारत्मक विचारों वाला बंदा हूं मैं जिन्दगी में जिन्दगी को नजदीक से गांवो और कस्बों में भी जाकर देखा है कि लोग किस तरह से रहते है। पर इसके बावजूद मैं बहुत कम गुस्सा होता हूं पर यदि कोई बहुत ही गलत कह रहा हो तो मुझे गुस्सा आ जाता है। मेरी सहनशक्ति काफी अच्छी है पर कुछ ज्यादा हो जाये तो में सह नहीं पाता हूं। मैं आदमी की शख्सियत को पढ़ने की कोशिश करता हूं सकारात्मक विचारों का हूं इसलिए तो मेरी फिल्म में विलन नहीं होता है। मुझे आज भी याद है पहले दिन जब में सलमान को टाइगर  की कहानी सुनाने गया था तो उन्हें ताज्जुब हुआ कि विलन के बिना फिल्म कैसे आगे बढ़ेगी?
मेरी अगली फिल्म फैंटम में भी हम टेररिस्ट के पीछे है किन्तु उन्हें मुगेंबो की तरह पेश नही किया है। टाइगर में भी विलन नही था किन्तु जो कुछ भी मै दिखाने की कोशिश करता हूं वह हालात को जरूर पेश करते है।
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उस दिन प्रेस मीट के दौरान आप क्यों गुस्सा हो गए थे ?
अरे सीधी सी बात है विकिपीडिया में कुछ भी लिखा जा सकता है और वो जर्नलिस्ट बिना वजह बहस कर रहा था। ऐसे लोग सक्रिय बुद्धि नहीं रखते है और इस लिए मुझे क्रोध आ गया था। शुक्र है हम एक सभ्य माहौल में थे वरना उस को मेरे गुस्से का शिकार होना पड़ता।
इंडो (हिंदी) – पाक से जुड़ी फिल्मे ही क्यों पेश करते है आप?
मेरी फिल्मों में सच्ची राजनीति पेश करने की कोशिश करता हूं मैं। हम ऐसे समय से गुजर रहे हैं जहाँ भारत -पाक रिश्ते राजनीति के परिवेश से होकर गुजरते है। मेरी फिल्म न्यूयॉर्क टेररिस्ट पर बेस्ड फिल्म रही। उस फिल्म में हिंदी पाक रिश्ते के बारे में कोई ज़िक्र नहीं था। बजरंगी एक इमोशनल लेवल की फिल्म है जबकि फैंटम एक रियल वर्ल्ड पर बनाई गयी एक फिल्म है। हमारे साधारण लोगों को इस लड़ाई झगड़े से कुछ नहीं लेना होता है। जिस दिन राजनीति सही चलने लगेगी उस दिन से सब कुछ सुलझ जायेगा।
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हुसैन ज़ैदी के किताब में दिलचस्पी क्यों ली आपने?
सीधी  सी बात है हुसैन ज़ैदी की किताब यह जताती है कि हम हमेशा किसी धमकी से डर  के ही अपना जीवन गुजार रहे है। कुछ कारण वश हम लोग जबरदस्त दुश्मनी या जबरदस्ती दोस्ती भी नहीं दिखला सकते हैं। इस फिल्म में 26/11 को हमने पूर्णत एक्सपोज किया है जो हम सबके लिए एक नासूर से कम नहीं है।  कसाब एक छोटी मछली था किन्तु इसके पीछे जो मास्टर माइंड है उन्हें खोजना होगा हमें। हुसैन ने अपनी किताब में सारा ब्यौरा एवं संदर्भों को अच्छी तरह से लिखा है।
जिस तरह आपकी बजरंगी भाईजान सक्सेस हुई तो क्या फिल्म फैंटम भी उसकी तुलना में खरी उतरेगी। क्या कहना चाहेंगे ?
दोनों फिल्में अलग अलग है फैंटम एक थ्रिलर फिल्म है। फिल्में अपनी कहानी की वजह से बॉक्स ऑफिस पर हिट या फ्लॉप होती है। मैंने इस फिल्म के थ्रिल एलिमेंट को बरकरार रखा है और गाने इस फिल्म की मांग नहीं है इस लिए यूं ही कोई आइटम नंबर नहीं डालना चाहा मैंने।
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आपकी अगली फिल्म के बारे में कुछ बोले ?
अगली फिल्म, “हॉलिडे” है पहले मैं पूरी क्लैरिटी से स्क्रिप्ट बना लेता हूं फिर पीछे मुड़ कर नहीं देखता हूं।
बॉक्स ऑफिस नंबर कितने मायने रखते है आपके लिए?
मैं बॉक्स ऑफिस के प्रेशर में नहीं जीता हूं। यदि ऐसा होता तो कमर्शियल फिल्म्स ही बनाता ।

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