Home / Main-Banner / INTERVIEW!! “दादाजी की कविताओं में सबसे अच्छी लगती है -अग्निपथ, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती, जीवन की आपा-धापी – आज तक इन कविताओं का स्वर पथ करूँ, ऐसा मैंने सोचा नहीं है।” – अभिषेक
INTERVIEW!! “दादाजी की कविताओं में सबसे अच्छी लगती है -अग्निपथ, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती, जीवन की आपा-धापी – आज तक इन कविताओं का स्वर पथ करूँ, ऐसा मैंने सोचा नहीं है।” – अभिषेक
By Mayapuri on August 18, 2015
“ऑल इज़ वेल अभिषेक बच्चन – कहते हैं कि यह एक पारिवारिक फिल्म है और इस में पीढ़ी के फर्क को दर्शाया गया है, किन्तु साथ ही अभिषेक ने इस फिल्म को करने के बाद अपने अंदर भी एक हल्का सा बदलाव पाया अपने माता पिता के प्रति। हालांकि अभिषेक बहुत ही संस्कारी पुत्र है किन्तु कहते हैं, ” मैंने इस बात को माना है कि -मुझे भी ऐसा लगा कि जब हमारी माँ अपने काम में व्यस्त होने से पहले हमें कॉल करके यह पूछ लेती है कि बेटा आपने खाना खाया ? तो क्या हम उनके कमरे में जा कर यह नहीं पूछ सकते की माँ आप कैसी हैं ? और कैसा रहा आपका दिन ? बस यही कुछ चाहते हैं वो भी हमसे”
आगे और भी बोले अभिषेक, ” मैंने जब पहली बारी फिल्म, “ऑल इज वेल” की कहानी पढ़ी थी तब मैं घर आ कर -सबसे पहले अपनी माँ के कमरे में गया और उन्हें ज़ोर से अपने गले लगा लिया। दरअसल जीवन की आपा – धापी में हम लोग यह भूल जाते हैं कि हमारे माता पिता ने हमारी परवरिश करने में बहुत समय दिया उन्होंने हमारी भलाई के लिए कई सारे बलिदान भी दिए और बुढ़ापे में यदि हमारे दो शब्द बात करने से उन्हें सुकून मिलता है तो क्यों नहीं हम उनकी तबीयत के बारे में उनसे पूछें और कुछ समय उनके साथ बैठ कर बितायें ? आज के बच्चे हमारे संस्कारों को भूलते जा रहें है। हमारी संस्कृति के जो मुल्य है उन्हें हमें हर दम जहन में रखना है और पीढ़ी का जो अंतर होता है उसे खत्म करना है। यदि हम छोटी छोटी बातों से अपने माता पिता का मन लुभा सकते है जो उन्हें ख़ुशी दे तो इससे अच्छा कुछ नहीं हो सकता। ठीक यही फिल्म, “ऑल इज़ वेल” में भी दिखाया है कि बेटे बाप में कितना अंतर्द्वंद होता है अपने अंदर -जबकि बाप चाहता है बेटा उसके काम को आगे बढ़ाये और म्यूजिशियन बनाना चाहता है। इस फिल्म द्वारा यह भी जताया गया है- कि माता पिता को अपने बेटे पर ऐसा दबाव नहीं डालना चाहिए। मेरे पिता जी श्री अमिताभ बच्चन जी को ले -उन्होंने ऐसा कभी नहीं चाहा कि मैं एक्टर ही बनूं। उन्होंने मुझे खुली छूट दी थी कि मैं जो भी काम चाहूं उसे करूं। जी हाँ, मुझे अभिनेता ही बनना था इसके इलावा मुझे कोई और काम नहीं करना था।
बचपन की यादें ताजा करते हुए अभिषेक बोले, ” जब मेरे पिताजी फिल्म, “गंगा की सौगंध” कर रहे थे तब मैं बहुत ही छोटा सा था। उन्होंने उस फिल्म में कबड्डी का एक सीन किया था, और जब मैंने पुछा था कि यह कौन सा खेल है तब वो मुझे बगीचे में ले गए और मुझे कबड्डी खेलना सिखाया था उन्होंने। यह खेल बचपन में जरूर खेला होगा सभी ने, हमारा खेल है, यह भारत का 4000 साल पुराना खेल है। महाभारत में अभिमन्यु एक अकेले सात चक्रव्यूह से लड़ते है। यह हमारा स्वदेशी खेल है। जी नहीं! मैंने कबड्डी को पूर्णजीवित नहीं किया है अपनी टीम के द्वारा ऐसा कहना उचित नहीं होगा यह आप का बड़प्पन है कि आप लोग ऐसा सोचते हैं। मैंने कबड्डी खेल इस लिए चुना है क्यूंकि सब हॉकी एवं क्रिकेट को ही देखते है और उसे ही बढ़ावा मिल रहा है, हॉकी और क्रिकेट के लिए बुनियादी सुविधायें हैं। मेरा ऐसा मानना है कि कबड्डी हमारा एक बहुत ही पुराना खेल है सो यही सोच कर मैंने इस खेल में अपनी रूचि दिखायी है।
मेरा समीकरण अपने पिताजी के साथ बाप-बेटे वाला नहीं है, हम दोनों एक अच्छे दोस्त की तरह ही हैं। आज वो आराध्या के दादाजी हैं किन्तु मेरे लिए मेरे वही पिताश्री हैं। मुझे जब कभी समय मिलता है मैं आराध्या के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताना चाहता हूं अभी आप लोग मुझे छोड़ें आराध्या के साथ खेल पाउँगा न ? हंस के अभिषेक बोले। कबड्डी नहीं समझ पाती है अभी आराध्या बहुत छोटी है लेकिन वो हम सबकी प्यारी है और सब उसे उतना ही प्यार देते है। स्पोर्ट्स की समझ उस में कुछ और बड़ी होने पर आएगी।
अपने दादाजी की कविताओं के बारे में अभिषेक ने कहा – मुझे दादाजी की कविताओं में सबसे अच्छी लगती है – अग्निपथ, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती, जीवन की आपा-धापी, आज तक इन कविताओं का स्वर पथ करूँ, ऐसा मैंने सोचा नहीं है, और अशोक चक्रधार की काव्य सम्मेलन में हमने बहुत बारी उपस्थिति भी दी है। उनकी कविताओं को पढ़ने का मौका तो मिला नहीं है समय की कमी की वजह से – किन्तु वो हमारे परिवार की तरह ही है तो यदा- कदा हम बैठ कर उनकी कवितायें सुन ही लेते हैं।
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