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INTERVIEW!! “हम सबने 70 एम एम पर्दे पर प्रीमियर ज़मीन पर ही बैठ कर देखा था रात 2 बजे” – अमितजी
By Mayapuri on August 18, 2015
अमिताभ बच्चन ने फिल्म, “शोले” की चालीसवीं वर्षगांठ पर प्रेस से खुल के बातचीत में शोले फिल्म की यादें ताजा करते हुए कहा – शोले हिंदी फिल्मी दुनिया की आज तक की सबसे बड़ी ब्लॉक बस्टर फिल्म मानी जाती है –
फिल्म शोले जब रिलीज़ हुई तो इसे लोगों ने पसंद नहीं किया था। तब सिप्पी साहब ने यह सोचा कि इस फिल्म का क्लाइमैक्स बदला जाये और फिर सोमवार तक नेगेटिव में फेर बदल कर कर नये क्लाइमैक्स शोले को किस तरह का रिस्पांस मिलता है यह हम देखेंगे।
उस समय मेरी फिल्म,”जंजीर भी रिलीज़ हुई थी जिस में मेरी मौत हो जाती है इस लिए इस फिल्म में दोबारा मुझे मारा गया इसे बदलना चाहते थे सलीम -जावेद ने दो क्लाइमैक्स लिखे। पर फिल्म थोड़ी चलने लगी हालाँकि थोड़ा सा रीशूट किया गया था। ”
उस समय यह एक कायदा था कि कोई भी किरदार कानून अपने हाथ में नहीं ले सकता था। इसमें हमें गब्बर को अरेस्ट करने वाला सीन दिखाना पड़ा था।
पहली बात तो मुझे इस फिल्म का हिस्सा बनने को मिला जो कि मेरे लिए सौभाग्य की बात है। मुझे इस फिल्म में लिया जाए इसके लिए में धरमजी के घर भी गया था उनसे अपनी शिफारिश करने के लिए कहा मैंने और मुझे गब्बर का रोल करना था किन्तु वीरू का रोल दिया गया था मुझे। ऊपर से मुझे गब्बर का किरदार करने का मन था। पर सलीम -जावेद का यह आईडिया था कि गब्बर का किरदार अमजद खान को ही दिया जाये। जैसे ही हम लोगों ने शूटिंग शुरू की मेरी और अमजद की दोस्ती बहुत हो गयी थी और वैसे भी हमारे अंदर कोई दुश्मनी की भावना नहीं थी। अमजद मुझे, “शॉर्टी ” (छोटू) कह कर बुलाते थे दरअसल वहाँ के लोग भी मुझे शॉर्टी और उन्हें चौड़े (गब्बर) कह कर पुकारते थे।
इस फिल्म में बहुत सी बातें पहली मर्तबा हुई – इस फिल्म में दोस्त अपनी प्यार – रोमांस की कहानी कहते हैं। और ब्रिटिश स्टंटमैन पहली बार हिंदी फिल्म में स्टंट्स/एक्शन सीन्स करने के लिए यहां आये थे, और इस फिल्म की मिक्सिंग भी यू के में हुई थी और यही पहली फिल्म है जो 70 एम एम पर्दे पर पहली बार दिखाई गयी। यह पहली डाकू फिल्म है जिसे बेंगलुरु में शूट किया गया। उस समय बहुत सारी डाकू की फिल्में राजस्थान एवं मध्य प्रदेश में शूट की जाती थी।
उस वक़्त बहुत से स्टंट्स सीन्स करते वक़्त अमूमन अभिनेताओं को चोट लग जाया करती क्यूंकि उन्हें सीमेंट की ज़मीन पर कूदना पड़ता था क़िन्तु इस फिल्म शोले से हमे पहली बारी कार्डबोर्ड बोक्सेस एवं गद्दो पर कूदने को मिला। “
हाल ही मैं मुझे कई ऐसे वयस्क मिले जो उस समय पैदा भी नहीं हुए थे पर उन्होंने शोले फिल्म लगभग ५० बारी देखी होगी। इस से यह बात तय होती है कि फिल्म को भले ही ४० साल गुजर गए है किन्तु ये फिल्म आज भी लोगों में उत्सुकता पैदा करती है।
शोले में जया बच्चन के साथ एक और इंसान गुपचुप इस फिल्म का हिस्सा बना रहा वो है श्वेता मेरी बेटी, जिसे उस समय गर्भ में पाल रही थी जया जी। मैं हमेशा श्वेता को यह याद दिलाता हूं कि तुमने भी बहुत कुछ दिया है फिल्म शोले को — ”
हम सबने 70 एम एम पर्दे पर प्रीमियर ज़मीन पर ही बैठ कर देखा था जो रात 2 बजे दिखाया गया था।
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