INTERVIEW!! “पलट कर देखता हूँ तो लगता है तब भी मेरे पास सब कुछ था और आज भी सब कुछ है” श्री अमिताभ बच्चन
लिपिका वर्मा
अमिताभ बच्चन सदी के युग नायक खुद को ‘गुदड़ी का लाल’ मानते हैं क्योंकि उन्हें गुदड़ी में लपेट कर टाँगे में घर पर लाया गया।” मुझे बचपन से थिएटर और ड्रामा में रूचि थी सो मैं फिल्मी दुनिया का हिस्सा बनने मुंबई चला आया और जब लोग हमें फिल्मी कहते हैं तो थोड़ा बुरा भी लगता है। हम लोग भी देश भक्त हैं और जब हमारे देश को थर्ड वर्ल्ड कहा जाता है तब भी खराब लगता है।”
श्री अमिताभ बच्चन अपनी आने वाली फिल्म, “वज़ीर” के प्रोमोशन्स हेतु पत्रकारों से मिले, “नए साल की शुभेच्छा तो दी सब को, लेकिन अमित जी ऐसा मानते हैं कि हर दिन नया दिन होता है, सो कुछ रिज्योल्यूशन्स लेने हो तो नए साल का इंतजार क्यों करना चाहिए?” मुझे इस बात से सख्त नफरत है कि आप कोई भी बदलाव अपने में लाना चाहें तो नए साल को ही क्यों करना चाहते है। दरअसल हर दिन नया होता है और यदि आप कोई बदलाव लाना चाहे तो आज से करना चाहिए या फिर अभी से। आपको नए साल का इंतजार नहीं करना चाहिए। ऐसा करते हैं तो इसका मतलब है कि आप जब तक निर्णय लेंगे अपनी बदमाशियों को उस दिन तक कर सकते हैं। सो यह इंतज़ार क्यों ? जो कुछ भी बदलाव करना है अपने अंदर तुरन्त कर लीजिये किसी भी दिन!!”
‘वज़ीर’ को आपका ड्रीम प्रोजेक्ट कहा जा सकता है क्या ?
देखिये यह सही है कि विनोद मेरे पास यह कहानी लेकर कोई १२ साल पहले आये थे। तब इस फिल्म का नाम, “चैस प्लेयर” रखा था। फिर कुछ व्यस्तता की वजह से तब इस कहानी को अंजाम नहीं दे पाये। और अब इस पर यह तय किया कि अब फिल्म बनानी है तो हम सब ने फिल्म कर डाली।
आप के किरदार के बारे में कुछ बतलायें ?
मैं किसी भी एक किरदार को चुनौतीपूर्ण नहीं मानता हूँ। यदि किसी कहानी के किरदार को करने के लिए हामी भरी है तो उस किरदार को निर्देशक के मुताबिक, कहानी के हिसाब से मुझे निभाना है और फिर किरदार के लिए जो कुछ भी करना है सो करना होता है। हर किरदार अपने आप में एक चुनौती है और उस चुनौती पर खरे उतरना ही एक अभिनेता का काम होता है। सो मैं सिर्फ अपना काम करता हूँ। इस किरादर के लिए चूँकि मैं शारीरिक तौर से विक्लांग दिखलाया गया हूँ तो, “व्हील चेयर का प्रयोग किया है। जी हाँ विनोद ने मुझे कई ढ़ेर सारी व्हील चेयर्स लेकर दी और कहा जो तुम्हे सबसे ज्यादा ठीक लगे उसे ही हम इस्तेमाल करेंगे। उनका मानना था कि मुझे व्हील चेयर का प्रयोग लगभग पूरी फिल्म में करना है सो यह व्हील चेयर आरामदायक होनी चाहिए।”
कुछ सोच कर और बोले अमितजी, ” कई लोगों का ऐसा भी मानना था कि मैं शारीरिक तौर से विक्लांग का किरदार कर रहा हूँ तो यह मेरे लिए नाकारात्म्क साबित होगा लेकिन मुझे यह सकरात्मक किरदार लगा क्यूंकि मुझे अपने हाथ और पैर का इस्तेमाल नहीं करना था। अक्सर जब हम खड़े होते हो तो हाथ और पैर से क्या करें यह भी हमें सोचना होता है। इस किरदार में मुझे सिर्फ अपने हाथ को व्हील चेयर तक ले जाना था। …सो यह किरदार मेरे लिया बहुत सकारात्मक रहा।
फरहान और आप ने कवितायें भी शेयर की सेट्स पर ?
जी हाँ! क्योंकि जावेद मेरे पुराने साथी हैं और फरहान हमारे सामने ही पैदा हुए हैं। जब हम दोनों सेट्स पर फ्री समय के दौरान बातचीत करते तो कुछ कवितायें और कुछ अन्य बातचीत किया करते। फरहान ने बेहद बेहतरीन किरदार निभाया है एक्शन सीन्स भी बहुत अच्छे से निभाए है। इसमें मेरा कोई योगदान नहीं रहा। वह एक अच्छे कलाकार है।
अपने पिताश्री हरिवंशराय बच्चन की तरह, आपकी रूचि भी है कविता लिखने में ?
जी नहीं ! मेरी तुलना उनसे नहीं की जा सकती। पर हाँ यदा -कदा मैं अपने प्रशंसकों के लिए कुछ लिख लिया करता हूँ।
आज भी काम करने में आपकी क्या उत्सुकता रहती है ?
बस काम कर लूं यही उत्सुकता बनी रहती है। दौर बदलता ही रहता है कितना भागे ? इसका अंत ही नहीं है। । ..बस जो काम मिलता है उसे करने में ही संतुष्ट हूँ। उसी उत्साह से काम स्वीकारता हूँ। प्रति दिन कैमरे के सामने जाना एक नया उत्साह और अनुभव होता है और इतना आसान नहीं होता है कैमरे के सामने जाने में तब भी यही मानता था और आज भी यही मानता हूँ। हर किरदार को उसके हिसाब से करना और बदलाव लाने का प्रत्यन करता हूँ।
आज के अभिनेताओं और अभिनेत्रियों के टैलेंट के बारे में क्या कहना चाहेंगे?
जितने भी कलाकार हैं सब बेहतरीन कला अभिनय पेश करते हैं और मुझे सब पसंद हैं। यदि कोई उनकी बुराई करे तो मैं उनसे बात करना बंद कर दूंगा। ..हंस कर बोले अमितजी।
कौन सी चीज़ कौतुहल पैदा करती है अमित जी में ?
यदि किसी के हाथ में कुछ नया देखता हूँ जैसे कोई नया फोन यंत्र हो तो यह जानने की इच्छा होती है कि कुछ नया है। और भी कई चीज़ है जो नयी हो तो उसे जानने की कौतुहलता पैदा होती है।
अपने बचपन की यादें ताजा करते हुए अमित जी बोले, ” मुझे याद है बचपन में जब मैंने “क्रिकेट क्लब” से जुड़ने की मंशा जतलाई तो ऐसा नहीं हो पाया। क्योंकि उसकी फीस केवल 2 रुपए थी, जो हम नहीं दे पाये। अक्सर जब लोगों को बड़ी -बड़ी गाड़ियों में बैठेकर जाते हुए देखता तो मुझे भी ऐसा लगता की हमारे पास ऐसी बड़ी गाड़ियां कब आएंगी। मैं अपने आप को गुदड़ी का लाल मानता हूँ। मुझे एक गुदड़ी में लपेट कर टाँगे में घर पर लाया गया। आज जब मेरे पास सब कुछ है तो मुझे लगता है कि मेरे पास गुदड़ी है जो मेरे लिए अहम है। पलट कर देखता हूँ तो लगता है तब भी मेरे पास सब कुछ था और आज भी सब कुछ है ।
ऑस्कर सिंड्रोम को लेकर अमितजी क्या कहना चाहेंगे ?
ऑस्कर ने उत्तम स्थान प्राप्त किया है ऐसा लोग समझते हैं, हम क्या उन्हें कोई पुरस्कार देते हैं कभी? क्यों सब इसके लिए पागल होते हैं? हमारे कलाकर जिन परिस्थितियों में काम करते हैं वह कबीले तारीफ है। ”
कुछ और जोड़ते हुए अमितजी बोले, ” हाल ही में कुछ आलोचकों ने लिखा रणवीर ने रस्सेल क्रो की तरह परफार्मेंस दी है। यह मुझे कुछ अच्छा नहीं लगा क्योंकि जिन परिस्थितियों में हमारे कलाकर काम करते हैं क्या वह लोग कर पाएंगे ? चाहे रणवीर सिंह हो या रणबीर कपूर सब के सब बहुत बेहतरीन कलाकार हैं आज के बच्चे।
अंततः जब अमितजी से पुछा गया सफलता के साथ गुरुर आ जाता है जो आप में नहीं है -ऐसा मैं नहीं मानता -मेरे शब्द कोष में यह शब्द नहीं है !!