INTERVIEW!! मेरी पत्नी ने मेरे सपने को पूरा करने में सहयोग दिया – राज कुमार हिरानी
निर्देशक राज कुमार हिरानी ने एक अद्भुत बातचीत में अपनी पत्नी और बेटे के बारे में भी बात कर डाली। साथ ही संजय दत्त की बायोपिक, सिनेमा और अपने सक्सेस मंत्रा के बारे में भी बताया उन्होंने। साथ ही बहुत सारे सवालों के जवाब दे डाले लिपिका वर्मा को
राजू हिरानी “जी हाँ फिलहाल मैं अपनी फिल्म, “साला खडूस” के प्रोमोशन्स में व्यस्त हूँ बस इसके बाद मैं संजय दत्त की बायोपिक पर काम करने वाला हूँ जो इस जुलाई में लांच होने वाली हैं।”
आपकी फिल्म में कोई ना कोई मैसेज होता है क्या कहना चाहेंगे?
जी हाँ मैं एक छोटे शहर से बिलोंग करता हूँ। वहां के जितने अनुभव हैं उन्हें अपनी फिल्म में कुछ संशोधित करके जरूर इस्तेमाल करता हूँ। छोटे शहरों में हमें फोन करके किसी के घर जाना नहीं होता है। जब कभी मन चाहे यूं ही चले जाया करते हैं। मेरी फिल्मों में जान बूझ के कोई मैसेज नहीं देता हूँ मैं। हाँ! पी.के. फिल्म में धार्मिक तौर से एक मैसेज जरूर दिया है मैंने। क्यूंकि हर कोई अपने भगवान के लिए लड़ता है। जबकि मेरा यह मानना है कि भगवान को हमारी देख रेख करनी होती है बल्कि हमें उनकी नहीं करनी होती है। इस मुद्दे को लेकर मैंने यह फिल्म बनायीं है और वह कौन सा भग़वान है, दरअसल में सबका मालिक एक ही है।
सिनेमा के बारे में क्या कहना है आपका ? बेहतरीन फिल्म बनाने का क्या फार्मूला है आपका ?
देखिये, सिनेमा एक बहुत ही क्रिएटिव तौर से बनाया जाता है। हमने जो कुछ अनुभव किया है जीवन में रियल लाइफ मुद्दे ही सिनेमा में दिखाये जाते हैं। यदि यूं ही कुछ बनाना हो तो डी वी डी से बनाया जा सकता है किन्तु सिनेमा बनाना एक बहुत ही सीरियस काम है और क्रिएटिव भी सो सबसे पहले तो मैं कोई अद्वितीय कहानी पर काम करना पसंद करता हूं और उसके बाद कहानी मैं ड्रामा, थ्रिल, इमोशंस जो भी हो वह मुझे अच्छा लगना चाहिए। मैं अपने लिए फिल्म बनाना पसंद करता हूँ क्यूंकि मेरा ऐसा मानना है कि यदि फिल्म की कहानी में दम है तो हर किसी को पसंद आएगी और यदि मुझे पसंद आई तो फिल्म अच्छी ही होगी।
आप आलोचनाओं को कैसे लेते हैं और विनोद जी किस तरह रियेक्ट करते हैं अपनी आलोचना सुनकर?
दरअसल हमारे ऑफिस में हर किसी को बोलने का अधिकार है स्क्रिप्ट पर हर कोई बोल सकता है। मुझे हर किसी के विचार जानने में अच्छा लगता है। हालांकि अब भी यदि हम जाने माने फ़िल्मकार हो गए हैं तो भी उन्हें उतना ही हक़ है बोलने का। इस से हमें लोगों की राय जानने को मिलती है। हमारे ऑफिस के पीअन को भी इस मामले में हमने अधिकार दे रखा है। कोई भी रचनात्मक आलोचना सुनने के लिए हम उत्सुक रहते हैं। विनोद जी भी अपनी आलोचना को पॉजीटिव तौर से ही लेते हैं। उनमें किसी तरह का कोई अहंकार [ईगो] नहीं होता है। हाँ यह जरूर है कभी कोई बदलाव ना कर पाएं हम, पर यदि जरुरी हो तो बदलाव लाने में हमे कोई एतराज नहीं होता है। लेखक अभिजात मेरी दूसरी फिल्म से मेरे साथ हैं और वह गुजरात में रहते हैं किन्तु हम हर रोज फ़ोन पर एक दूसरे से बातचीत जरूर करते हैं। जब भी हम फिल्में बनाते हैं तो वह एक दूसरे के सहयोग से ही बनाते हैं।
संजय दत्त की बायोपिक के बारे में कुछ बतलाएं?
मुझे संजय दत्त ने करीब 4/5 घंटे बैठ कर अपनी कहानी सुनाई। हम लोग कोई ख़ास दोस्त नहीं है जैसा कि लोग सोचते हैं। बस यदा- कदा मिल लेते हैं। दरअसल में “मुन्नाभाई” करने के बाद ही हमारी जान पहचान हुई थी। संजय की कहानी में ड्रामा, थ्रिल आर इमोशन भरपूर है। इस लिए उसकी लाइफ हिस्ट्री पर काम करने में मजा आएगा। संजय को कतई तकलीफ नहीं है जैसी उसकी लाइफ हिस्ट्री है वैसी ही मैं पर्दे पर उतरने वाला हूँ और यदि वह मुझे कुछ कहता कि यह मत डालो वह मत दिखाना तो मैं उसकी बायोपिक को ज़रा भी हाथ नहीं लगता। संजू बहुत ही कूल बंदा है। फिल्म जुलाई माह पर फ्लोर्स पर जाएगी। फिलहाल रणबीर कपूर लीड रोल के लिए चुने गए हैं। उनके पेरेंट्स की तलाश जारी है। अन्य कास्ट – क्रेडिट अभी तय नहीं किये गए है।
मुन्नाभाई सीरीज भी बनाने वाले थे आप क्या हुआ ?
मैं कुछ अच्छा सब्जेक्ट ढूंढ रहा था। अभी कुछ अच्छा सा सुझा है बस उसे भी लिख कर आप के सामने लाने वाला हूँ बहुत जल्द, दरअसल पहली वाली फिल्म से कुछ बेहतर होना चाहिए इसलिए अभी तक हम मुन्नाभाई सीरीज को आगे नहीं ला पाये।
आपकी पत्नी का कितना सहयोग मिलता है आपको?
वह एयर इंडिया में एक पायलट की हैसियत से काम करती है। उनका आर्मी बैकग्राउंड से ताल्लुक है काफी अनुशासित भी हैं। अच्छा है वह काम में मशरूफ रहती हैं वरना घर में अकेले पड़ जाती क्योंकि अमूमन मैं घर से बाहर ही रहता हूँ। जब हमारी शादी हुई थी तब मैं एडिटिंग और कुछ एड फ़िल्में किया करता था। मुझे फिल्म बनाने का एक सपना भी था। मेरी पत्नी के सहयोग से वह भी पूरा हो गया। शुरु शुरू में हमारी हालत अच्छी नहीं थी। गोरेगांव में केवल एक रूम में रहा करते। किन्तु मेरी पत्नी ने मेरे सपने को पूरा करने में सहयोग दिया और वह चाहती एवं सोचती रहती अक्सर कि यह अपना सपना कैसे पूरा कर पाएंगे ? मेरी पत्नी को सिनेमा का ज्यादा ज्ञान नहीं है इसलिए उसको मैं फिल्म पूर्ण होने के बाद ही दिखलाता हूँ। वह मेरी आलोचक है फिर चाहे में उसकी बात से सहमत हो या ना हो, किन्तु मुंहफट होने की वजह से अपने दिल की बात तुरंत कह देती है।
आपका बेटा वीर क्या सिनेमा में रूचि रखता है ?
जी हाँ वीर को सिनेमा के बारे में काफी जानकारी है। स्कूल के एक प्रोजेक्ट में हाल ही में अपने कुछ दोस्तों के साथ मिलकर एक फिल्म, “लाइफ एंड डेथ” पर डॉक्यूमेंट्री बनायी है। आजकल के बच्चों के हाथ में एक कैमरा तो रहता ही है और टेक्निकली सब कुछ बड़ी आसानी से मिल जाता है। उसके साथ बैठ कर फिल्म पर चर्चा कर सकता हूँ क्योंकि उसे सिनेमा में रूचि और उसकी समझ भी है। पता नहीं उसे फिल्में बनानी है या नहीं ? मेरे पदचिन्हों पर चलेगा या नहीं ? पर हाँ जो कुछ भी करना चाहेगा मैं उसका जरुर सहयोग करूँगा।