Tuesday, 29 December 2015

INTERVIEW!! “मैंने अपनी पूरी की पूरी, ‘भड़ास’ निकाल ली है” – फरहान अख्तर/lipika varma

INTERVIEW!! “मैंने अपनी पूरी की पूरी, ‘भड़ास’ निकाल ली है” – फरहान अख्तर

ताजा खबरफ़िल्मी इंटरव्यू
INTERVIEW!! “मैंने अपनी पूरी की पूरी, ‘भड़ास’ निकाल ली है” – फरहान अख्तर

फरहान अख्तर को गुणसूत्र विरासत में मिले हैं क्योंकि इनकी 6 पीढ़ी लेखनी से जुडी हुई थी और जाहिर सी बात है कि कलम की ताकत – ज़ोया फरहान में तो एक अच्छी खासी मायने रखती है, किन्तु इनकी बेटी जो केवल 15 वर्ष की ही हैं वह भी कलम से उतना ही प्रेम रखती हैं।
फरहान अख्तर ने लिपिका वर्मा से दिल खोल कर बातचीत की
पहली बारी आउट एंड आउट एक्शन फिल्म कर रहे हैं क्या कहना है ?
मुझे एक्शन सीन्स करने में बहुत ही मजा आया। दरअसल में सारे के सारे एक्शन सीन्स कोरियोग्राफ किये जाते हैं सो हम उसे इतनी बारी रिहर्सल कर लेते हैं कि कही पर भी किसी को कोई चोट नहीं लगती है। फिल्म, ‘वज़ीर’ में ढेर सारा रोमांच है। मुझे पहली बारी खुल कर पिटने का मौका मिल रहा है, सो एक्शन सीन्स करने में इसलिए भी बहुत मजा आया क्योंकि हर बारी मुझे सब पीटते थे किन्तु इस बारी मुझे सबको मारने का मौका मिल रहा है सो जाहिर सी बात है मैंने बहुत एन्जॉय किये है यह रोमांचक मौके। सही मायने में मैंने अपनी पूरी की पूरी, ‘भड़ास’ निकाल ली है इस फिल्म में सब को पीट -पीट कर हंस कर बोले फरहान।
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आप एक अच्छे लेखक, निर्देशक, गायक और एक बेहतरीन अभिनेता भी हैं -अपनी जीन-गुणसूत्रों का कमाल मानते हैं इसे ?
‘जीन-गुणसूत्रों’ का कमाल तो है ही, सबके के अंदर वह होते हैं। किन्तु मेरा यह मानना है कि जिस माहौल में हम बड़े होते हैं उस माहौल का भी अच्छा ख़ासा असर तो होता ही है। फिल्म इंडस्ट्री का मैं बचपन से ही हिस्सा रहा हूँ। मेरे माता-पिता जिन्होंने मुझे और ज़ोया को हमेशा से ही सपोर्ट किया है। जो कुछ भी हम करना चाहते थे उसे करने के लिए उनका साथ मिलना हमारे लिए एक बड़ी बात है। लेखनी तो हमारी 6 पुश्तों से चली आ रही है। लेखनी का जादू मेरे पिताजी से मुझे और ज़ोया को विरासत में मिला है, इसमें कोई दो राय नहीं है। किन्तु वह सारे लोग जिन्होंने मुझे प्रेरित किया है मैं उन्हें भी इस बात का क्रेडिट देना चाहूंगा कि उनकी चुनौतियों की वजह से हम आज यहाँ तक पहुँच पाये हैं। इस कथन को नकारात्मक ना लें। दरअसल में फिल्मों को करना मेरे लिए एक अच्छी सी फीलिंग उत्पन्न किया करता और मैं धीरे धीरे अपनी यात्रा को आगे बढ़ता चला गया और भी आगे चलने की चाह है मुझ में अभी।
आप ने अपनी रचनात्मक ताक़त को कब पहचान दी ?
मैंने अपनी रचनात्मक ताक़त बहुत ही छोटी सी उम्र में पहचान ली थी शायद मैं तब 14 या 15 वर्ष का था। मैं तब स्कूल में ही पढ़ता था। दृश्य प्रभाव का असर मुझ पर बहुत पहले से ही पड़ चूका था। फिर मैंने फ़ोटोज खींचनी शुरू की और इसके लिए बाबा आज़मी ने मेरी बहुत मदद भी की। लेकिन क्योंकि यह एक बहुत ही महंगा काम था और उस समय मुझे पैसों की जरूरत भी थी सो मैंने फिल्मों में सहायक निर्देशक की भूमिका निभाने की सोची।
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सही मायने में आप ने स्वतंत्र निर्देशक की भूमिका किस उम्र में निभायी थी ?
जब हमने फिल्म, “दिल चाहता” का बीज डाला था तब मैं केवल 24 वर्ष का ही था किन्तु जब मैंने, ‘दिल चाहता’ का निर्देशन किया तो मैं २६ वर्ष का हो चुका था। निर्देशक बिजॉय नाम्बियार मेरे दोस्त हैं किन्तु हम एक साथ अब काम कर रहे हैं फिल्म,”वज़ीर” में। मैंने उनकी फिल्म, “शैतान” भी काफी पसंद की थी। बिजॉय के निर्देशन में बहुत मैजिक (जादू) है यह आपको फिल्म, “वज़ीर” में देखने मिलेगा क्यूंकि फिल्म में रोमांच, ड्रामा और सब सही मात्रा में परोसा गया है।
अमिताभ बच्चन के साथ काम किया, उनकी आभा से तो जरूर प्रभावित हुए होंगे आप ?
यह कहना बहुत मुश्किल होगा कि मैं अमित जी से प्रभावित नहीं हुआ। जिसे हम देख कर बड़े हुए हैं उनके सामने काम करना हमारे लिए एक बहुत बड़ी चुनौती है पर सच कहूँ तो उनके साथ उनके घर में जो हमने साथ बैठ कर रिहर्सल किया तब हम काफी क्लोज हो गए थे। किन्तु जब पहली बारी सेट्स पर शूट करने पहुंचे तो यह सोच कर मैं स्तब्ध था कि हमारी यह फिल्म, “वज़ीर” जब भी परदे पर दिखलायी जायेगी मैं भी अमित जी के साथ तब तब नजर आनेवला हूँ। यह मेरे लिए एक मान -सम्मान की बात है। कौन नहीं चाहेगा कि वह अमितजी के साथ एक साथ स्क्रीन स्पेस शेयर करे?
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आप कोई भी किरदार कैसे चुनते हैं ?
मैं हमेशा पहले स्क्रिप्ट देखता हूँ और उसकी कहानी के अहम मुद्दे के बारे में विचार विमर्श करता हूँ। यदि कहानी अच्छी होती है तो फिल्म को करता हूँ। मेरे हिसाब से कहानी बेहतरीन होना बहुत ही अनिवार्य है। उसके बाद ही मैं अपने चरित्र को चुनता हूँ। मुझे कहानी और अपने चरित्र चित्रण दोनों में एक सहज अपील नजर आती है।
आपने शतरंज खेला है क्या कभी?
आजकल समय के अभाव की वजह से हम शतरंज खेल नहीं पाते हैं। पर हाँ बचपन में शतरंज और कैरमबोर्ड खेलते थे हम। आजकल तो सब वीडियो गेम्स खेल कर ही बड़े हो रहे हैं। हाँ! पर कंप्यूटर आने से एक और फायदा भी हुआ है, हम सब बहुत कुछ लिख पाते है जल्दी और तो और स्क्रिप्ट भी लिखी जाती है उस पर।

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